जल समाधि: संतों को क्यों दी जाती है जल समाधि?

JAL SAMDHI

जब कोई महान संत इस नश्वर संसार को त्यागता है, तो उनका अंतिम संस्कार भी उतना ही विशिष्ट और आध्यात्मिक होता है जितना उनका संपूर्ण जीवन। हाल ही में, अयोध्या के राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास को जल समाधि दी गई, जिससे यह प्राचीन परंपरा एक बार फिर चर्चा में आ गई। आखिर क्यों साधु-संतों को अग्नि संस्कार की बजाय जल समाधि दी जाती है? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए इस पवित्र प्रक्रिया को विस्तार से समझते हैं।

जल समाधि क्या होती है?

हिंदू धर्म में यह माना जाता है कि मानव शरीर पंच तत्वों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से मिलकर बना होता है। जब किसी व्यक्ति का निधन होता है, तो इन तत्वों में वापसी ही उसका अंतिम संस्कार कहलाता है।

आमतौर पर, साधारण मनुष्यों का अंतिम संस्कार अग्नि में किया जाता है, लेकिन संतों और महात्माओं का शरीर अत्यंत पवित्र माना जाता है, इसलिए उन्हें जल में विलीन कर दिया जाता है, जिसे जल समाधि कहते हैं। इस प्रक्रिया में संत के पार्थिव शरीर को किसी पवित्र नदी या सरोवर में प्रवाहित किया जाता है। यह उनकी आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का एक पवित्र मार्ग माना जाता है।

संतों को जल समाधि क्यों दी जाती है?

जल समाधि के पीछे कई धार्मिक और आध्यात्मिक कारण होते हैं—

1. अग्नि संस्कार से मुक्त करना

हिंदू धर्म में साधु-संतों को सांसारिक मोह-माया से मुक्त माना जाता है। जब किसी साधारण व्यक्ति का अंतिम संस्कार होता है, तो उसे अग्नि में जलाकर मुक्त किया जाता है, क्योंकि वह संसार के बंधनों में रहता है। लेकिन संत पहले से ही सांसारिक इच्छाओं से मुक्त होते हैं, इसलिए उन्हें अग्नि के माध्यम से शुद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती।

2. पंच तत्वों में विलीन होने की प्रक्रिया

साधु-संत अपने जीवन में बहुत उच्च आध्यात्मिक स्तर पर पहुंच चुके होते हैं। वे जीवनभर तपस्या और साधना करते हैं, जिससे उनके शरीर की पवित्रता बनी रहती है। जल को हिंदू धर्म में शुद्धि का प्रतीक माना गया है, और यह मान्यता है कि जल समाधि लेने से उनका शरीर बिना किसी प्रदूषण के सीधे पंच तत्वों में विलीन हो जाता है।

3. मोक्ष की प्राप्ति

मोक्ष हिंदू धर्म में अंतिम लक्ष्य होता है। जल समाधि का सीधा संबंध मोक्ष से जोड़ा जाता है। यह माना जाता है कि जल में समाधि लेने से आत्मा को मोक्ष प्राप्त करने में सहायता मिलती है और वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाती है।

4. नदी का धार्मिक महत्व

गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, कृष्णा और सरयू जैसी नदियों को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना गया है। जल समाधि देने के लिए इन नदियों का उपयोग किया जाता है, क्योंकि इनका जल आत्मा को शुद्ध करने और मोक्ष दिलाने में सहायक माना जाता है।

जल समाधि की प्रक्रिया कैसे होती है?

जल समाधि देने की प्रक्रिया बहुत ही पवित्र और विधिवत तरीके से संपन्न की जाती है। इसमें निम्नलिखित चरण होते हैं—

  1. संस्कार और पूजन: संत के पार्थिव शरीर को स्नान कराया जाता है और वैदिक मंत्रों के साथ पूजा की जाती है।
  2. जल में प्रवाहित करना: शरीर के साथ भारी पत्थर बांध दिए जाते हैं, ताकि वह नदी के तल में स्थिर रह सके।
  3. वैदिक मंत्रोच्चार: अंतिम क्षणों में संतों के लिए विशेष वैदिक मंत्रों का जाप किया जाता है, ताकि उनकी आत्मा को शांति और मोक्ष प्राप्त हो सके।
  4. परंपरा का निर्वहन: यह पूरी प्रक्रिया किसी वरिष्ठ संत या गुरु के मार्गदर्शन में संपन्न होती है।

हाल ही में हुई जल समाधि: आचार्य सत्येंद्र दास

हाल ही में, अयोध्या के राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का निधन हो गया। उन्हें सरयू नदी में जल समाधि दी गई, जिससे यह परंपरा फिर से चर्चा में आ गई।

आचार्य सत्येंद्र दास का जीवन परिचय

आचार्य सत्येंद्र दास का जन्म 20 मई 1945 को उत्तर प्रदेश के संत कबीरनगर जिले के खेवहिया गांव में हुआ था। 1952 में, उन्होंने हनुमानगढ़ी के संत बाबा अभिराम दास से दीक्षा लेकर संन्यास ग्रहण किया और नागा साधु बने। 1955 में, उन्होंने सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से आचार्य की डिग्री प्राप्त की और 1956 में त्रिदंड देव संस्कृत महाविद्यालय में प्राध्यापक के रूप में नियुक्त हुए। 2007 में वे व्याकरण विभागाध्यक्ष के रूप में सेवानिवृत्त हुए। 1 मार्च 1992 को, उन्हें राम जन्मभूमि मंदिर का पुजारी नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने अपने जीवन के अंतिम क्षण तक सेवा की।

जल समाधि की प्रक्रिया

आचार्य सत्येंद्र दास के निधन के पश्चात, उनके पार्थिव शरीर को सरयू नदी के तुलसीदास घाट पर ले जाया गया। वहां, वैदिक मंत्रोच्चार के बीच, उनके शरीर को नदी की मध्य धारा में ले जाकर जल समाधि दी गई। इस अवसर पर बड़ी संख्या में संत, महंत, जनप्रतिनिधि, शिष्य और श्रद्धालु उपस्थित थे, जिन्होंने उन्हें अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित की।

जल समाधि केवल एक अंतिम संस्कार की विधि नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जो आत्मा की मुक्ति के लिए की जाती है। साधु-संतों का जीवन ही त्याग और साधना से भरा होता है, इसलिए उनकी मृत्यु भी विशेष होती है। जल समाधि उन्हें मोक्ष दिलाने का एक पवित्र और वैदिक तरीका माना जाता है, जो भारतीय संस्कृति और धर्म की गहराई को दर्शाता है।

क्या आपको यह परंपरा रोचक लगी? अपने विचार हमें कमेंट में जरूर बताएं!

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