“एक थाली, एक थैला” अभियान: महाकुंभ 2025 की हरित क्रांति

महाकुंभ 2025 में पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए “एक थाली, एक थैला” अभियान को सफलतापूर्वक लागू किया गया। इस पहल ने न केवल 29,000 टन कचरा कम किया बल्कि ₹140 करोड़ की बचत भी सुनिश्चित की।


अभियान की आवश्यकता क्यों पड़ी?

महाकुंभ में प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु आते हैं और भंडारों में प्रसाद ग्रहण करते हैं। आमतौर पर, इस दौरान बड़े पैमाने पर डिस्पोजेबल प्लास्टिक प्लेट, कप और बैग का उपयोग किया जाता है, जिससे गंगा और आसपास के क्षेत्रों में कचरा बढ़ता है। यह न केवल पर्यावरणीय संकट खड़ा करता है बल्कि सफाई के लिए प्रशासन पर भी भारी बोझ डालता है।

इसी समस्या के समाधान के लिए यह अभिनव पहल शुरू की गई, ताकि प्लास्टिक कचरे को खत्म किया जा सके और स्थायी समाधान अपनाया जाए।


इस पहल की शुरुआत कैसे हुई?

“एक थाली, एक थैला” अभियान महाकुंभ प्रशासन और विभिन्न संगठनों के सहयोग से शून्य बजट पर संचालित किया गया।
इसमें 2,241 संगठनों और 7,258 संग्रहण स्थानों ने भाग लिया, जिससे बड़ी संख्या में लोगों तक इस अभियान का प्रभाव पहुंच सका।


कैसे किया गया क्रियान्वयन?

  1. हर श्रद्धालु को स्टील की थाली, कपड़े का थैला और स्टील का गिलास उपलब्ध कराया गया।
  2. स्थानीय अखाड़ों, भंडारों और सामुदायिक रसोई में पुन: उपयोग योग्य बर्तनों का प्रबंध किया गया।
  3. प्लास्टिक और डिस्पोजेबल सामग्री पर निर्भरता खत्म करने के लिए जागरूकता अभियान चलाए गए।
  4. श्रद्धालुओं को प्रेरित किया गया कि वे अपने साथ लाए हुए थैले और बर्तनों का ही उपयोग करें।

अभियान के प्रमुख आंकड़े और उपलब्धियां:

कुल स्टील थालियां वितरित: 14,17,064
कुल कपड़े के थैले वितरित: 13,46,128
कुल स्टील गिलास वितरित: 2,63,678
बचाया गया कचरा: 29,000 टन
आर्थिक बचत: ₹140 करोड़
लंबे समय तक उपयोग किए जाने वाले संसाधनों की उपलब्धता


इसका भविष्य पर प्रभाव

  • महाकुंभ जैसे बड़े आयोजनों के लिए एक स्थायी मॉडल तैयार हुआ।
  • स्टील के बर्तन वर्षों तक उपयोग किए जाएंगे, जिससे प्लास्टिक के प्रयोग में दीर्घकालिक कमी आएगी।
  • यह पहल अन्य धार्मिक और सामाजिक आयोजनों के लिए भी एक प्रेरणास्रोत बनी।

“एक थाली, एक थैला” अभियान महाकुंभ 2025 का एक ऐतिहासिक कदम रहा। इसने यह साबित किया कि जब समाज और प्रशासन मिलकर सही दिशा में कार्य करते हैं, तो बड़े बदलाव संभव होते हैं। यह पहल न केवल गंगा को स्वच्छ रखने में सफल रही, बल्कि सामुदायिक भागीदारी से पर्यावरण संरक्षण का बेहतरीन उदाहरण भी बनी।

💚 यदि हम अपनी आदतों में थोड़ा सा बदलाव करें, तो पर्यावरण और समाज के लिए बड़ा योगदान दे सकते हैं! 💚

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