रामायण की महागाथा में रावण एक अत्यंत शक्तिशाली और जटिल चरित्र के रूप में सामने आता है। वह लंका का अद्वितीय राजा था, जिसने अपने बल, बुद्धिमत्ता और तत्वों पर अधिकार जमा लिया था। लेकिन जब उसने माता सीता का अपहरण किया, तब भी उसने उन पर जबरन अत्याचार नहीं किया। यह प्रश्न उठता है: रावण, जिसने देवताओं तक को हराया था, सीता को बलपूर्वक क्यों नहीं छू सका? इसका उत्तर एक प्राचीन शाप में छिपा है, जिसने उसकी इन इच्छाओं पर रोक लगा दी थी।
सीता का अपहरण
रावण द्वारा सीता के अपहरण की घटना रामायण की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। जब रावण, अपने क्रोध और लालच से प्रेरित होकर, सीता को लक्ष्मण रेखा से बाहर निकालकर अपहरण कर लेता है, तब सभी को भय था कि वह सीता के साथ अनर्थ करेगा। सीता को लंका के सुंदर अशोक वाटिका में बंदी बनाकर रखा गया था, लेकिन फिर भी रावण ने उन्हें बलपूर्वक कुछ नहीं किया।
कई लोग मानते हैं कि सीता की शुद्धता और उनके राम के प्रति अटूट प्रेम के कारण रावण उन्हें छू नहीं सका। लेकिन इसके पीछे एक और गहरी वजह थी – रावण को मिले एक प्राचीन शाप का प्रभाव, जिसने उसे इस गलत कदम से रोक दिया।
रावण को लगा शाप
विभिन्न रामायण संस्करणों और कुछ अन्य ग्रंथों के अनुसार, रावण ने अपने पिछले जीवन में एक घोर अपराध किया था, जिसके चलते उसे यह शाप मिला था। एक समय, रावण ने अप्सरा रंभा पर अत्याचार करने की कोशिश की थी। रंभा, जो कुबेर के पुत्र नलकुबेर की पत्नी थी, उसके साथ जबरदस्ती करने का प्रयास रावण ने किया।
इस घटना से नलकुबेर अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने रावण को शाप दिया कि यदि वह कभी किसी स्त्री पर बलपूर्वक अत्याचार करने का प्रयास करेगा, तो उसकी तुरंत मृत्यु हो जाएगी। यह शाप रावण के लिए एक निर्णायक बिंदु साबित हुआ। यद्यपि वह एक प्रबल और अजेय राजा था, लेकिन इस शाप ने उसकी इच्छाओं पर एक अदृश्य रोक लगा दी थी। रावण, जो स्वयं को सर्वशक्तिमान समझता था, अब किसी स्त्री पर अत्याचार करने की हिम्मत नहीं कर सकता था, और इस शाप ने उसकी सीमाओं को निर्धारित कर दिया।यह शाप रामायण में सीता की पवित्रता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। रावण ने कई बार सीता को लुभाने और उनसे विवाह करने के लिए तरह-तरह के प्रयास किए, लेकिन उसने कभी भी उस सीमा को पार करने का साहस नहीं किया। यह शाप उसे लगातार याद दिलाता था कि अगर उसने ऐसा कोई कदम उठाया, तो उसका जीवन समाप्त हो जाएगा।
रावण का यह शाप उसकी चरित्र की जटिलता को और भी गहराई से दर्शाता है। वह केवल एक सामान्य खलनायक नहीं था, बल्कि एक समझदार और अपने कर्मों के परिणामों से वाकिफ व्यक्ति था। उसकी यह विवशता उसके कर्मों के अधीन होने का प्रतीक है, यह दर्शाती है कि किसी भी प्राणी को उसके कर्मों से बचने का अवसर नहीं मिलता। इस शाप ने उसे अपनी इच्छाओं के आगे विवश कर दिया और उसकी आकांक्षाओं को निष्फल कर दिया।
रावण के पतन में कर्म का प्रभाव
नलकुबेर का यह शाप हमें हिंदू दर्शन में कर्म के सिद्धांत की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में भी बताता है। यहां तक कि रावण जैसा प्रबल राजा भी अपने कर्मों के परिणामों से बच नहीं सका। उसके भूतकाल के कुकर्मों ने उसके जीवन में यह शाप लाया, जिसने अंततः उसकी हार का कारण बना।
रावण के लिए सीता पर बलपूर्वक अत्याचार न कर पाना केवल नैतिक बंधन नहीं था, बल्कि यह उसके कर्मों का सीधा परिणाम था। नलकुबेर के शाप ने यह सुनिश्चित किया कि रावण अपने पापों के कारण अपने उद्देश्यों को प्राप्त न कर सके। अंततः, यह शाप और सीता की राम के प्रति अटूट भक्ति ने उन्हें लंका में सुरक्षित रखा।रावण का यह शाप यह याद दिलाता है कि सबसे शक्तिशाली व्यक्ति भी अपने कर्मों के परिणामों से बंधे होते हैं। चाहे वह कितना भी बलशाली क्यों न हो, रावण अपने कर्मों के दुष्परिणाम से बच नहीं सका। नलकुबेर द्वारा दिया गया यह शाप सीता की सुरक्षा का एक माध्यम बना, जिससे उनकी पवित्रता सुरक्षित रही।
यह कथा केवल रावण के पतन की नहीं है, बल्कि यह न्याय और ब्रह्मांड में अच्छाई और बुराई के संतुलन की एक व्यापक थीम भी है। यह हमें यह सिखाती है कि कोई भी कृत्य बिना परिणाम के नहीं होता और सबसे शक्तिशाली व्यक्तियों को भी अपने कर्मों के लिए उत्तरदायी होना पड़ता है। अंततः, रावण का घमंड और अनैतिकता ही उसके विनाश का कारण बनीं, जो कर्म के शाश्वत सत्य को दर्शाती हैं।
बहुत से लोग रावण को एक संयमी व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करते हैं और कहते हैं कि उसने सीता माता को स्पर्श तक नहीं किया। ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि उन्हें हमारे ग्रंथों का सही ज्ञान नहीं है। बिना शास्त्रों को गहराई से समझे इस प्रकार की टिप्पणी करना अनुचित है। पहले हमारे प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए, फिर सही और गलत पर तर्क करना चाहिए। रामायण जैसे महाकाव्यों में रावण के वास्तविक चरित्र और उसके कर्मों के परिणाम स्पष्ट रूप से वर्णित हैं। इसलिए, तात्कालिक राय देने से पहले हमारे शास्त्रों का सम्मानपूर्वक अध्ययन जरूरी है।
‘पद्मश्री’ सुश्री निवेदिता रघुनाथ भीड़े जी ने भी उन लोगों को सलाह दी है जो रावण को महान और संयमी साबित करने की कोशिश करते हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि ऐसे लोगों को हमारे ग्रंथों का उचित अध्ययन करना चाहिए और उसके बाद ही किसी प्रकार की टिप्पणी करनी चाहिए।